कोई चाहत है न जरुरत है
मौत क्या इतनी खूबसूरत है
मौत की गोद मिल रही हो अगर
जागे रहने की क्या जरुरत है
जिंदगी गढ़ के देख ली हमने
मिटटी गारे की एक मूरत है
सारे चेहरे जमा हैं माजी के
मौत क्या दुल्हिनों की सूरत है
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यह न सोचो कल क्या हो
कौन कहे इस पल क्या हो
रोओ मत, न रोने दो
ऐसी भी जल-थल क्या हो
बहती नदी की बांधे बांध
चुल्लू में हलचल क्या हो
हर छन हो जब आस बना
हर छन फिर निर्बल क्या हो
रात ही गर चुपचाप मिले
सुबह फिर चंचल क्या हो
आज ही आज की कहें-सुने
क्यों सोचें कल, कल क्या हो.
यह न सोचो कल क्या हो
कौन कहे इस पल क्या हो
रोओ मत, न रोने दो
ऐसी भी जल-थल क्या हो
बहती नदी की बांधे बांध
चुल्लू में हलचल क्या हो
हर छन हो जब आस बना
हर छन फिर निर्बल क्या हो
रात ही गर चुपचाप मिले
सुबह फिर चंचल क्या हो
आज ही आज की कहें-सुने
क्यों सोचें कल, कल क्या हो.
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आज भी सुनिए मीना कुमारी जी की ये नज़्म उन्ही के आवाज़ में..
आगाज़ तो होता है अंजाम नहीं होता
जब मेरी कहानी में वह नाम नहीं होता
जब जुल्फ की कालिख में घुल जाए कोई राही
बदनाम सही लेकिन गुमनाम नहीं होता
हंस हंस के जवां दिल के हम क्यों न चुने टुकड़े
हर शख्स की किस्मत में इनाम नहीं होता
बहते हुए आंसू ने आँखों से कहा थम कर
जो मय से पिघल जाए वो जाम नहीं होता
दिन डूबे हैं या डूबी बरात लिए कश्ती
साहिल पे मगर कोई कोहराम नहीं होता